नवीन चौहान
भाजपा हाईकमान को त्रिवेंद्र सिंह रावत की ताकत का एहसास हो गया था। त्रिवेंद्र ने विष पीकर भाजपा के सम्मान को सुरक्षित रखा।
देवस्थानम बोर्ड और भू-कानून भाजपा हाईकमान की सोच का परिणाम था। जिसका निर्णय भी भाजपा हाईकमान ने ही किया। हाईकमान के इन फैसलों पर त्रिवेंद्र सिंह रावत जनता के आक्रोष का शिकार हुए। वहीं इन विवादित फैसलों के इतर बात करें तो प्रदेश के नौकरशाह और जनता त्रिवेंद्र की काबलियत का लोहा मानती है।
सुरक्षित और मजबूत प्रशासन दिया
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चार साल के कार्यकाल में एक मजबूत और सुरक्षित प्रशासन दिया। उनके कार्यकाल में प्रदेश में लूट की छूट नहीं थी। अराजकता का माहौल नहीं था। सरकार भाजपा की और मंत्री कांग्रेस के बने। सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल और यशपाल आर्य जैसे दिग्गजों को अपने साथ साध कर लेकर चलना त्रिवेंद्र ने करके दिखाया।
कोई मंत्री नहीं कर पाया खेल
सरकार में मुखिया रहते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सभी पर अपनी नजर रखी। मंत्री कोई भी लेकिन उसके कामकाज को अपनी निगरानी में रखा। कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद जीत कर मंत्री बने हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज और सुबोध उनियाल व यशपाल आर्य भी मंत्री रहते कोई खेल अपने विभागों में नहीं कर सके।
धामी सरकार रही नतमस्तक
जानकारों की मानें तो त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद से ही धामी सरकार कांग्रेसी दिग्गजों के सामने नतमस्तक रही। भाजपा सरकार और संगठन दोनों ही बदनाम हो गए। हालांकि अपनी दाल आगे गलती न देख यशपाल आर्य चुनाव से पहले ही छोड़कर चले गए। हरक सिंह रावत संगठन पर दबाव बनाने की राजनीति करने लगे तो ऐन मौके पर पार्टी ने उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया।
त्रिवेंद्र को हटाना गलती तो नहीं
ऐसे में भाजपा हाईकमान को त्रिवेंद्र सिंह रावत की उपयोगिता का एहसास हो गया होगा। काश हाईकमान त्रिवेंद्र के चार साल के कार्यो और कार्यक्षमता का आंकलन कर पाता। तो प्रदेश में भाजपा की यूं छिछालेदारी ना होती। त्रिवेंद्र की ताकत का एहसास हाईकमान महसूस करता तो प्रदेश में भाजपा की हालत यूं पतली ना होती।
इस बार कड़े मुकाबले से गुजरना होगा
अबकी बार 60 पार का नारा लेकर चुनाव में उतरी भाजपा अपनी सरकार बनाने के लिए संघर्ष करती दिखाई पड़ रही है। बदले घटनाक्रम के बाद प्रदेश में भाजपा को कड़ी चुनौती मिलनी तय है। जानकार कह रहे हैं यदि त्रिवेंद्र को न हटाते तो मुकाबला आसान होता। त्रिवेंद्र जनता के पहले भी लोकप्रिय थे और आज भी लोकप्रिया हैं। लेकिन बदले हालात में अब एक—एक सीट के लिए भाजपा को कड़े मुकाबले से गुजरना होगा।
विधायकों और मंत्रियों की नाराजगी मोल ली
बतातें चले कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की गरिमा को बरकरार रखा। नैतिक चरित्र के बल पर कांग्रेस के तमाम बागी नेताओं को जो भाजपा सरकार में मंत्री थे, उन सभी पर अंकुश बरकरार रखा। विधायकों और मंत्रियों से नाराजगी मोल ली लेकिन डबल इंजन की भाजपा सरकार की साख बचाकर रखी।
कई बार त्रिवेंद्र ने पिया विष
भू कानून, देवस्थानम बोर्ड, मंत्री मंडल का विस्तार ना होना, दायित्वों का विस्तार ना होना। यह सभी निर्णय हाईकमान के आदेश पर निर्भर रहे। लेकिन इनकी बुराई का विष त्रिवेंद्र को पीना पड़ा। उन्होंने विरोध करने वालों को भी समझाने की कोशिश की लेकिन वो समझ नहीं सके।
त्रिवेंद्र की योग्यता में दम
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी प्रशासनिक और संगठनात्मक ताकत का एहसास पार्टी और जनता को कराया। जनहित के निर्णय सर्वोपरि रखे। भष्ट चरित्र के लोगों के बीच एक ईमानदार सरकार देकर जनता के विश्वास को जीता। प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी त्रिवेंद्र की तारीफ करती दिखाई दी। कांग्रेस के प्रमुख लीडर हरीश रावत ने त्रिवेंद्र के बुलंद हौसले की प्रशंसा सार्वजनिक रूप से की। लेकिन भाजपा हाईकमान अपने ही ईमानदार कार्यकर्ता त्रिवेंद्र के आत्मबल को समझने में असफल दिखा।
खनन को लेकर उठने लगे सवाल
प्रदेश में जब पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाया तब खनन माफियाओं को सचिवालय में घूमते देखा जाने लगा। लोग कहते हैं कि ऐसा ही नजारा कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में देखने को मिलता था।
आखिर नाराजगी की वजह क्या रही
त्रिवेंद्र के प्रति जिस नाराजगी की बात भाजपा के विधायक, संघ के लोग और तमाम सरकार में शामिल मंत्री करते थे। क्या वास्तव में वह त्रिवेंद्र का अंकुश था। वही अंकुश जिसने यशपाल आर्य, हरक सिंह रावत पर लगाम लगाकर रखी। त्रिवेंद्र का वही अंकुश, जिससे प्रदेश लुटने से बचा रहा। लेकिन भाजपा हाईकमान के जल्दबाजी के एक निर्णय ने सबकुछ बदल दिया। त्रिवेंद्र को बदलने की भूल का खामियाजा हाईकमान अब शायद महसूस कर रहा है।
संगठन में बढ़ा त्रिवेंद्र का कद
फिलहाल भाजपा हाईकमान की नजरों में त्रिवेंद्र सिंह रावत का कद बढ़ चुका है। हो सकता है कि भाजपा त्रिवेंद्र को विधानसभा चुनाव लड़ने की बजाय कोई और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर उनको उपयोग करें। उन्हें पार्टी संगठन में भी कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है ताकि चुनाव में 60 प्लस का पाने के लिए डैमेज कंट्रोल किया जा सके।